बहे दूध पर रो मत | जानने अल्लाह

बहे दूध पर रो मत


डॉक्टर मुहम्मद अब्दुर्रहमान अल अरीफी

कुछ लोगों का मानना हैं कि जिस लक्षण पर पालनपोषण हुआ है, और जिस स्वभाव के द्वारा लोगों के बीच जाना जा चुका है, या लोगों के दिमाग़  पर एक व्यक्ति के बारे में जो छाप पड़ गया है वह कभी नहीं बदल सकता l इसलिए वह  उसके बंधन से निकल नहीं सकता और उसी पर संतुष्ट रहना है l बस ऐसे ही जैसे कि अपने शरीर की लंबाई और अपनी खाल के रंग के विषय में लाचार होता है, बदल नहीं सकता l
लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति  का तो मनना यही है कि अपने स्वभाव को बदलना तो कपड़े बदलने की तुलना में अधिक आसान है l
हमारे स्वभाव बहे हुए दूध की तरह नहीं है जिस को फिर उठाना या बह जाने के बाद इकठ्ठा करना असंभव हो जाए l बल्कि, वह तो हमारी मुठ्ठी में है, और हम कुछ विशेष तरीक़ों के माध्यम से लोगों के स्वभाव ही नहीं बल्कि उनके विचारों को भी बदल सकते हैं l

इब्न हज़म अपनी पुस्तक "तौक अल-हमामा" में एक कहानी उल्लेख किया है कि: अन्दलुस में एक जाना माना व्यापारी था, उस व्यापारी और चार अन्य व्यापारियों के बीच प्रतियोगिता चल पड़ी, इसलिए वे उसे नापसंद करने लगे! उन चारों ने उसे छेड़ कर भड़काने की योजना बना लिया, एक सुबह वह व्यापारी अपने घर से निकला और अपने कार्यस्थल को जा रहा था, सफेद कुरता पहना हुआ और सफेद पगड़ी बांधे हुए था, चारों व्यापारियों में से रास्ते में एक से भेंट हो गई तो उसने उस व्यापारी को सलाम किया और उसकी पगड़ी की ओर देख कर कहा: वाह क्या ही सुंदर पीली पगड़ी है!  
व्यापारी ने कहा:क्या तुम अंधे हो गए हो? पगड़ी पीली नहीं सफेद है!
 उस ने कहा:नहीं, पीली है, क्या कहना है! है तो पीली लेकिन है बहुत सुंदर!
व्यापारी उसे छोड़कर आगे चला इतने में उनमें से दूसरा मिल गया l उसने उसे सलाम किया, और उसकी पगड़ी की ओर देख कर कहा:वाह आज तुम कितने सुंदर लग रहे हो! तुम्हारे कपड़े बहुत अच्छे लग रहे हैं!  विशेष रूप से  यह हरी पगड़ी!
व्यापारी ने कहा: अरे भाई! पगड़ी सफेद है l
उसने ज़ोर देकर कहा नहीं: हरे रंग की है l
व्यापारी ने कहा:सफेद है! चलो चलो जाने दो l
बेचारा वहाँ से चला  और मन ही मन में बड़बड़ाने लगा l और बार बार अपनी पगड़ी के अपने कंधे पर लटकते किनारे की ओर देखने लगा l  ताकि उसे विश्वास हो जाए कि वास्तव में सफेद ही है या नहीं l वह अपनी दुकान को पहुंचा और दुकान का ताला खोलने लगा l
 इसी बीच, तीसरा टपक पड़ा और कहा:आज की सुबह कितनी सुंदर है! और विशेष रूप से आपके कपड़े, वाह कितने अच्छे लग रहे  हैं ! और आपकी इस सुंदर नीली पगड़ी की तो बात ही कुछ और है, वह तो आपकी सुंदरता को चार चान्द लगा रही है l
व्यापारी ने एक बार फिर अपनी पगड़ी की ओर देखा कि सफेद है कि नहीं l उसने अपनी आखों को मला, और कहा: प्रिय भाई! मेरी पगड़ी सफेद है !
उसने कहा: नहीं, यह नीली है l लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि अच्छी लग रही है, चिंता मत करो l यह कह कर वह वहाँ से निकल पड़ा: व्यापारी उस पर चिल्लाना शुरू  किया  और कहा पगड़ी तो सफेद है और वह बार बार पगड़ी की ओर देखने लगा  और पगड़ी के किनारे को उलटफेर कर के देर तक उसे देखता रहा l
वह थोड़ी देर के लिए अपनी दुकान में बैठ गया लेकिन पगड़ी के लटकते किनारे से अपनी आँखें को हटा नहीं सका l इस बीच, चौथा व्यक्ति भी आ धमका और कहा: अस्सलामु अलैकुम!
ज़रा यह तो बताइएगा कि इस लाल पगड़ी को आप ने कहाँ से खरीदा है? व्यापारी चिल्लाया: और कहा:मेरी पगड़ी नीली है नीली l
उस व्यक्ति ने कहा:नहीं, यह तो लाल है l
व्यापारी ने कहा:नहीं, यह तो हरे रंग की है! अरे नहीं वास्तव में यह सफेद है!  नहीं, यह तो नीली है , नहीं नहीं यह तो काली है! इस के बाद वह ज़ोर से हँसा , फिर चिल्लाया, फिर रोना शुरू किया और फिर ऊपर-नीचे कूदने लगा!
इब्न हज़म ने  कहा:इसके बाद मैं उस व्यक्ति को स्पेन की सड़कों पर देखा करता था कि पागल हो गया था और बच्चे उस पर पत्थर फेंकते थे l [1]
देखिए यदि यह चार लोग अपने सीधेसादे कौशल को उपयोग करके, एक आदमी के स्वभाव को बदल सकते हैं बल्कि उस व्यक्ति के विचारधारा को बदलने में सफल हो सकते हैं तो फिर योजनाबद्ध  और दोनों प्रकार की ईशवाणी (क़ुरआन और हदीस) से प्रकाशित कौशलों के विषय में आप का क्या ख्याल है? जिन को आदमी अल्लाह सर्वशक्तिमान की प्रसन्नता के लिए प्रयोग करता है l 
इस लिए आप को जो भी अच्छे कौशल और गुण मिलते हैं उनको लागू कीजिए, ताकि संतुष्ट और प्रसन्नता से जी सकें l  और यदि आप यह बहाना बनाएँ कि मुझ से तो नहीं होसकता है l तो मैं तो आपको यही कहना चाहूँगा कि:कम से कम कोशिश तो कीजिए l
और यदि आप कहेंगे कि मैं तो जानता ही नहीं हूँ तो मैं कहूँगा कि सीखने का प्रयास कीजिए l हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने कहा: "ज्ञान तो सिखने के माध्यम से आता है, और सहनशीलता तो सह-सह कर प्राप्त होती है l"

दृष्टिकोण l
हीरो तो वास्तव में वह होता है जो केवल अपने कौशल को ही विकसित करने की ही शक्ति नहीं रखता है बल्कि अन्य लोगों के कौशलों को भी विकसित करने बल्कि उन में परिवर्तन लाने की शक्ति से भरपूर होता l

 



[1] यह कहानी इब्न हज़म-अल्लाह उन पर दया करे- की प्राधिकारी पर है l

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