जिस बात से आपको कोई मतलब नहीं उस में हस्तक्षेप मत कीजिए | जानने अल्लाह

जिस बात से आपको कोई मतलब नहीं उस में हस्तक्षेप मत कीजिए


Site Team

एक व्यक्ति के अच्छे मुसलमान होने में यह शामिल है कि जिस बात से उसको कोई मतलब न हो उसे  छोड़ दे l
वाह कैसा सुंदर शब्द है हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- का ! क्योंकि यह शब्द एक पवित्र और शुद्ध मुंह से निकला है जिसको हम सुन रहे हैं l जी हाँ बेमतलब बात को छोड़ देना एक अच्छा मुसलमान होने की निशानी है l
ऐसे मूर्ख बहुत मिलेंगे जो आपको बेमतलब हस्तक्षेप करके परेशान करेंगे l
यदि वे आप की घड़ी देखेंगे तो पूछ लेंगे: कितने में खरीदी है?

यदि आपने उत्तर दिया:यह उपहार में मुझे मिली है l

फिर वह पूछेंगे किस की ओर से उपहार में मिली है? यदि आप कहते हैं: एक मित्र की ओर से l
इसी पर वह बस नहीं करेंगे बल्कि और अधिक बात बढ़ा कर पूछेंगे विश्वविद्यालय के कैसे दोस्त की ओर से ? या आपके क्षेत्र के किसी मित्र से?या कहीं और से ?
आप ने उत्तर दिया: भाई मेरे ! विश्वविद्यालय के मेरे एक दोस्त की ओर से l आगे वह पूछेंगे:ठीक है, किन्तु यह तो बताइए कि क्या अवसर था?
आप उत्तर  देंगे: हमारे विश्वविद्यालय के समय में एक अवसर था l

वह पूछेंगे:किन्तु क्या कोई विशेष अवसर था? सफलता का अवसर था या आप किसी यात्रा पर थे? या फिर  और कुछ था?
इसी ढंग से वह बेमतलब मुद्दे पर सवाल पर सवाल ठोकता जाएगा l
अल्लाह की क़सम आप ही बताइए क्या आप चिड़चिड़ा कर उसे झिड़की नहीं देंगे और यह कह कर उत्तर  नहीं देंगे: बेमतलब हस्तक्षेप मत करो l बात तो और भी बुरी हो सकती है यदि वह आप से किसी भरी सार्वजनिक बैठक में इस प्रकार का सवाल किया और आपको शर्मिंदगी में डाल दिया l

मुझे याद है कि एक बार मैं कई मित्रों के एक समूह था, यह बैठक सूर्य डूबने के बाद की नमाज़ के बाद हुई थी, मेरे दोस्तों में से एक के मोबाइल पर घंटी बजी वह मेरे बग़ल में बैठे थे, वह फोन पर हेलो "हाँ" कह रहा था, उसकी पत्नी फोन पर चिल्लाकर कहती है: हेलो! गधा! तुम अब तक कहाँ हो?
उसकी आवाज़ इतनी ऊँची थी कि मैंने उन दोनों की बातचीत को सुन सकता था l इसने कहा: मैं ठीक हूँ, अल्लाह तुम्हारी रक्षा करे l(!!!) (मुझे ऐसा लगा कि उसने अपने परिवार को नमाज़ के बाद कहीं ले जाने का वचन दिया था किन्तु बाद में हमारे साथ बैठ गया)

उसकी पत्नी वास्तव में नाराज़ हो गई थी: तुम्हारा सत्यानाश हो, तुम तो अपने दोस्तों के साथ मस्त हो और मैं यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा करती बैठी हूँ अल्लाह की क़सम तुम तो बिल्कुल बैल हो l
उन्होंने कहा:अल्लाह तुम से ख़ुश रहे, मैं इशा की नमाज़ के बाद तुरंत आ रहा हूँ l
मुझे लग गया कि वास्तव में उसकी बात उसकी पत्नी की बात से मेल नहीं खा रही है, किन्तु वह अपने आप को रुसवा भी नहीं करना चाह रहा है इसलिए बात को बनाते जारहा है l
जब वह कॉल समाप्त कर चुका तो  मैंने उपस्थित लोगों की ओर देखा कि कहीं कोई उससेपूछ तो नहीं रहा है:कि किसका फोन था? क्या बोल रहा था? तुम से क्या काम है? फोन के बाद से तुम्हारे चेहरे का रंग फीका क्यों पड़ गया?

किन्तु अल्लाह ने उस पर दया किया और किसी ने बेमतलब हस्तक्षेप नहीं किया l  
एक बात जो उन्हें चिंता नहीं किया में दखल दिया l
इसी प्रकार यदि आप किसी बीमार की तीमारदारी के लिए गए और  आपने उसकी बीमारी के विषय में पूछा, तो उसने आपको सामान्य शब्दों में बताया कि अल्लाह का आभार प्रदर्शित करता हूँ, मामूली बीमारी है कोई गंभीर बात नहीं है और उसने अपनी बात समाप्त कर दी l या इस प्रकार के और कोई शब्द कह दिए जिसमें कोई विशेष और स्पष्ट रूप से उत्तर नहीं था l
तो आप इस से अधिक भीतर की खोज में मत पड़िए और अपने विस्तृत सवाल के द्वारा उनको शर्मिंदा मत कीजिए l
किन्तु यह हरगिज़ मत पूछिए कि: वास्तव में आपको क्या बीमारी है? ज़रा स्पष्ट तो कीजिए, मैंने समझा नहीं या इस प्रकार के दूसरे शब्द मुंह से मत निकालिए l बड़ी आश्चर्य की बात है आप बेमतलब क्यों उनको रुसवा करना चाहते हैं?
"एक व्यक्ति के अच्छे मुसलमान होने में यह शामिल है कि जिस बात से उसको कोई मतलब न हो उसे  छोड़ दे" क्या आप उनके मुंह से यह सुनना चाहते हैं कि: मुझे बवासीर है, या मुझे एक शर्मनाक जगह में चोट है इत्यादि? जब वह आपको एक अस्पष्ट उत्तर  दे दिया तो फिर अधिक खोज कुरेद की ज़रूरत नहीं रही l मेरा मतलब यह नहीं है कि आप बीमार से उनकी बीमारी के बारे में प्रश्न न करें l मेरा कहने का मतलब बस इतना है कि आप सवाल पर सवाल न ठोकें l 
इस का एक अन्य उदाहरण भी है: एक व्यक्ति सभी लोगों के सामने  एक सार्वजनिक सभा में एक छात्र को आवाज़ दे कर ज़ोर से कहता है: अरे! अहमद! क्या हुआ परीक्षा में? क्या पास हो गए हो? अहमद ने कहा: हाँ, उन्होंने फिर पूछा:क्या प्रतिशत है? ग्रेड क्या है?
यदि वास्तव में आप उसके लिए चिंतित हैं तो उससेएकांत में पूछिए, जब आपके और उनके साथ कोई भी न हो, फिर अधिक गहराई में जाने की क्या ज़रूरत है, प्रतिशत क्या है? तुम पढ़ाई में ध्यान  क्यों नहीं दिए थे ? तुम को विश्वविद्यालय में क्यों स्वीकार नहीं किया गया l यदि आप  वास्तव में उसकी सहायता करने के लिए तैयार हैं तो उसका साथ दीजिए और ऐसी बात कीजिए जिस से उसको आनंद मिले l किन्तु सार्वजनिक बैठक में उसको नंगा करें और उसकी अपूर्णताओं , दोषों और कमियां को लोगों के सामने खोल खोल कर रखें तो इसका आपको अधिकार नहीं हैं l अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:"एक व्यक्ति के अच्छे मुसलमान होने में यह शामिल है कि जिस बात से उसको कोई मतलब न हो उसे  छोड़ दे "
किन्तु, सावधान रहें, बात का बतंगड़ न बनाएं l

एक बार मैं पवित्र मदीना की यात्रा पर था और मुझे वहाँ कई व्याख्यान देने थे l तो मैंने एक भले युवा के साथ बात कर लिया कि वह मेरे दोनों पुत्रों अब्दुर-रहमान उसके भाई को सूर्य डूबने से पहले(अस्र) वाली नमाज़ के बाद क़ुरआन याद दिलाने के पाठशाला या गर्मी मनोरंजन केंद्र में छोड़ दे और फिर शाम (इशा) की नमाज़ के बाद घर वापस छोड़ दे l
अब्दुर-रहमान उस समय दस साल का था मुझे आशंका लगा कि युवा कुछ बेकार सवाल पूछ सकता है:आपकी माँ का नाम क्या है? घर कहाँ है? आपके कितने भाई हैं? अपके पिता आपको कितने पैसे देते हैं?
तो मैंने अब्दुर-रहमान को चेतावनी दे दी कि: यदि वह तुमसे बेमतलब प्रश्न करे तो उसे यह कह देना: अल्लाह के पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:"एक व्यक्ति के अच्छे मुसलमान होने में यह शामिल है कि जिस बात से उसको कोई मतलब न हो उसे  छोड़ दे"  
मैंने कई बार इस पवित्र हदीस को दुहराया यहाँ तक उसको याद हो गई l
अब्दुर-रहमान और उसका भाई उसके साथ कार में बैठ गया, अब्दुर- रहमान ज़रा परेशान और डरा हुआ था l
युवक ने लाडो प्यार से कहा: अब्दुर-रहमान! अल्लाह तुमको अच्छा रखे,
अब्दुर-रहमान ने होशियारी से उत्तर दिया: आपको भी अल्लाह अच्छा रखे! बेचारा युवक कुछ पूछने के लिए माहौल बनाना चाहता था इसलिए, उन्होंने कहा:  क्या धर्मगुरु को आज कहीं व्याख्यान देना है? अब्दुर-रहमान ने उस पवित्र हदीस को ध्यान में लाने का प्रयास किया किन्तु उसको बिल्कुल वही शब्द उस समय याद नहीं आए थे तो उसने अपने ही शब्दों में कह दिया: बेमतलब विषयों में हस्तक्षेप मत कीजिए l तो वह युवा कहने लगा:मेरा मतलब वह नहीं है, मैं तो केवल उनके व्याख्यान में शामिल होकर उससे लाभ लेना चाहता हूँ l  
अब्दुर-रहमान ने सोचा कि वह चतुर बन रहा है, उसने फिर वही उत्तर दुहराया कि: बेमतलब विषयों में हस्तक्षेप मत कीजिए l
युवक ने कहा: मैं क्षमा चाहता हूँ अब्दुर-रहमान! मेरा मतलब ग़लत नहीं है l अब्दुर-रहमान ने कहा कि: बेमतलब विषयों में हस्तक्षेप मत कीजिए l उनके बीच यही स्तिथि रही यहाँ तक कि वह घर वापस आगए l
अब्दुर-रहमान ने मुझे पूरी कहानी गर्व के साथ सुनाया l
मैं हँसा और उसे फिर से पूरी बात समझाया l

परिश्रम का अवसर  
अपने आप को दूसरों के विषयों में हस्तक्षेप करने की लत से मुक्त करने के लिए परिश्रम करना होगा l शुरूआत में तो इस में कष्ट है, किन्तु अंत में बहुत आरामदायक l

 

 

 

 

Previous article Next article

Related Articles with जिस बात से आपको कोई मतलब नहीं उस में हस्तक्षेप मत कीजिए

जानने अल्लाहIt's a beautiful day