जानबूझ कर बिना वुज़ू के नमाज़ पढ़ना कबीरा गुनाह है, कुफ्र नहीं है | जानने अल्लाह

जानबूझ कर बिना वुज़ू के नमाज़ पढ़ना कबीरा गुनाह है, कुफ्र नहीं है


Site Team

मैं जानता हूँ कि जनाबत (स्वपनदोष) की हालत में नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है, लेकिन अगर किसी ने जनाबत की हालत में नमाज़ पढ़ लिया, तो उसकी नमाज़ का क्या हुक्म है ?
उसके अंदर अब यह एहसास पाया जा रहा है कि वह पूरी तरह से टूट चुका है, और अपनी अवज्ञा की वजह से चिंतित है। कयोंकि उसने किसी किताब में पढ़ा है कि अगर मुसलमान बिना वुज़ू के नमाज़ पढ़ ले तो वह इस्लाम से बाहर निकल जाता है। इस आधार पर, उपर्युक्त व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? क्या वास्तव में वह अपने इस कृत्य की वजह से इस्लाम के दायरे से बाहर निकल गया, या नहीं ?
वह उस गुनाह से कैसे छुटकारा प्राप्त करे और पश्चाताप (तौबा) करे ? क्या उसके लिए अपने ईमान को नया करना ज़रूरी है ?



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

मुसलमानों के यहाँ यह बात ज़रूरी तौर पर ज्ञात है कि छोटी और बड़ी दोनों नापाकियों से पवित्रता व सफाई ज़रूरी है और नमाज़ के शुद्ध होने के लिए एक शर्त है। और जिसने जानबूझकर या या भूल-चूक में बिना पवित्रता के नमाज़ पढ़ लिया तो उसकी नमाज़ व्यर्थ (अमान्य) है, और उसके ऊपर उसे दोहराना अनिवार्य है। फिर अगर उसने जानबूझकर ऐसा किया है तो उसने एक बड़ा गुनाह और महा पाप किया है।

शैखुल इस्लाम इब्न तैमिय्या रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

''मुसलमान क़िब्ला के अलावा की ओर मुँह करके, या बिना वुज़ू के, या बिना रूकूअ या सज्दा के नमाज़ नहीं पढ़ेगा। जिसने ऐसा कर लिया तो वह निंदा और दण्ड का अधिकारी होगा।'' अंत हुआ।

''मिनहाजुससुन्नतिन् नबविय्यह'' (5/204).

ऐसा करने वाले के लिए सख्त धमकी और कड़ी चेतावनी आई है :

अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फरमाया : ''अल्लाह के बंदों में से एक बंदे को उसकी क़ब्र में एक सौ कोड़ा लगाने का हुक्म दिया गया। तो वह निरंतर प्रश्न करता और दुआ करता रहा यहाँ तक कि वह एक कोड़ा रह गया। चुनाँचे उसे एक कोड़ा लगाया गया। तो उसकी क़ब्र उसके ऊपर आग से भर गई। जब वह आग उससे हट गई तो उसे होश आया। उसने कहा : तुम ने मुझे किस बात पर कोड़ा लगाया है? तो उससे कहा गया : तू ने एक नमाज़ बिना पवित्रता (बिना वुज़ू) के पढ़ी थी। तथा तू एक मज़लूम के पास से गुज़रा था तो उसकी सहायता नहीं की थी।'' इसे तहावी ने ''मुश्किलुल आसार'' (4/231) में उल्लेख किया है और अल्बानी ने इसे अस्सिलसिला अस्सहीहा (हदीस संख्या : 2774) में हसन कहा है।

दूसरा :

विद्वानों की इस बात पर सहमति है कि जिसने बिना वुज़ू के उसे हलाल (जायज़) समझते हुए, या उपहास (मज़ाक़) करते हुए नमाज़ पढ़ी तो उसने कुफ्र किया, उससे तौबा करवाया जायेगा। अगर उसने तौबा कर लिया तो ठीक है, नहीं तो उसे क़त्ल कर दिया जायेगा। लेकिन अगर उसने लापरवाही करते हुए बिना वुज़ू के नमाज़ पढ़ी है, उसे जायज़ समझते हुए या उपहास के तौर पर नहीं किया है, तो इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह इस बात की ओर गए हैं कि वह तब भी काफिर होगा, और जमहूर उलमा का मत यह है कि वह काफिर नहीं होगा, बल्कि वह बड़े गुनाहों में से एक गुनाह का करने वाला होगा।

अल्लामा नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं:

''अगर वह अपवित्रता (नापाकी) को और उसके होते हुए नमाज़ पढ़ने के निषेद्ध को जानने वाला था तो उसने एक महान पाप किया है, और इसकी वजह से वह हमारे निकट काफिर नहीं होगा, सिवाय इसके कि वह इसे हलाल समझता हो। अबू हनीफा कहते हैं कि : वह उपहास करने की वजह से काफिर हो जाएगा। हमारा तर्क यह है  कि वह एक पाप है। अतः वह ज़िना (व्यभिचार) और उसके समान गुनाहों के समान है।'' नववी की बात समाप्त हुई। ''अल-मजमूअ'' (2/84). और इसी के समान ''रौज़तुत् तालेबीन'' (10/67) में भी है।

तथा हनफियों का मत ''अल-बहरूर्रायिक़'' (1/302, 151), (5/132), ‘‘हाशिया इब्न आबिदीन'' (3/719) में देखें।

जिसने बिना पवित्रता के नमाज़ पढ़ी है, उसके ऊपर तौबा व इस्तिग़फ़ार करना और दुबारा इस तरह की चीज़ न करने का दृढ़ संकल्प करना अनिवार्य है। फिर उसने जो नमाज़ें बिना तहारत के पढ़ी हैं उनको दोहराए, अल्लाह तआला तौबा करने वाले की तौबा को क़बूल करता है। तथा इसके ऊपर अपने इस्लाम का नवीकरण करना अनिवार्य नहीं है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

देखिए प्रश्न संख्या (27091).

इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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